Wednesday, May 30, 2012

Murli [30-05-2012]-Hindi

मुरली सार : ''मीठे बच्चे - इस समय बूढ़े, बच्चे, जवान सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, क्योंकि सभी को वाणी से परे मुक्तिधाम जाना है, तुम उन्हें घर का रास्ता बताओ'' 
प्रश्न: बाप की श्रीमत हर बच्चे के प्रति अलग-अलग है, एक जैसी नहीं - क्यों? 
उत्तर: क्योंकि बाप हर बच्चे की नब्ज देख, सरकमस्टांश देख श्रीमत देते हैं। समझो कोई निर्बन्धन हैं। बूढ़ा है या कुमारी है, सर्विस के लायक है तो बाबा राय देंगे इस सेवा में पूरा लग जाओ। बाकी सबको तो यहाँ नहीं बिठा देंगे। जिसके प्रति बाप की जो श्रीमत मिलती है उसमें कल्याण है। जैसे मम्मा बाबा, शिवबाबा से वर्सा लेते हैं ऐसे फॉलो कर उन जैसी सर्विस कर वर्सा लेना है। 
गीत:- भोलेनाथ से निराला.... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) पुरानी दुनिया की किसी भी चीज़ में लागत (लगाव) नहीं रखना है। इस दुनिया में किसी भी बात का शौक नहीं रखना है क्योंकि यह कब्रिस्तान होने वाली है। 
2) अब नाटक पूरा होता है, हिसाब-किताब चुक्तू कर घर जाना है इसलिए योगबल द्वारा पापों से मुक्त हो पुण्य आत्मा बनना है। डबल दानी बनना है। 
वरदान: ज्ञान युक्त भावना और स्नेह सम्पन्न योग द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले बाप समान भव 
जो ज्ञान स्वरूप योगी तू आत्मायें हैं वे सदा सर्वशक्तियों की अनुभूति करते हुए विजयी बनती हैं। जो सिर्फ स्नेही वा भावना स्वरूप हैं उनके मन और मुख में सदा बाबा-बाबा है इसलिए समय प्रति समय सहयोग प्राप्त होता है। लेकिन समान बनने में ज्ञानी-योगी तू आत्मायें समीप हैं इसलिए जितनी भावना हो उतना ही ज्ञान स्वरूप हो। ज्ञानयुक्त भावना और स्नेह सम्पन्न योग-इन दोनों का बैलेन्स उड़ती कला का अनुभव कराते हुए बाप समान बना देता है। 
स्लोगन: सदा स्नेही वा सहयोगी बनना है तो सरलता और सहनशीलता का गुण धारण करो।