मुरली सार : ''मीठे बच्चे - बाप आया है तुम्हारी सब शुद्ध कामनायें पूरी करने, रावण अशुद्ध कामना पूरी करता और बाप शुद्ध कामना पूरी करता''
प्रश्न: जो बाप की श्रीमत का उल्लंघन करते हैं - उनकी अन्तिम गति क्या होगी?
उत्तर: श्रीमत का उल्लंघन करने वालों को माया के भूत अन्त में राम-राम संग है... करके घर ले जायेंगे। फिर बहुत कड़ी सजा खानी पड़ेगी। श्रीमत पर न चले तो यह मरे। धर्मराज पूरा हिसाब लेता है, इसलिए बाप बच्चों को अच्छी मत देते, बच्चे माया की बुरी मत से सावधान रहो। ऐसा न हो बाप का बनकर फिर कोई विकर्म हो जाए और 100 गुणा दण्ड भोगना पड़े। श्रीमत पर न चलना, पढ़ाई छोड़ना ही अपने ऊपर बददुआ, अकृपा करना है।
गीत:- ओम् नमो शिवाए...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) यज्ञ की प्यार से सेवा कर, कदम-कदम पर श्रीमत पर चलते बाप से मन-इच्छित फल अर्थात् विश्व की बादशाही लेनी है।
2) विनाश तो होना ही है - इसलिए अपना सब कुछ सफल कर लेना है। पैसा है तो सेन्टर खोल अनेको के कल्याण के निमित्त बनना है।
वरदान: व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को सेकण्ड में स्टॉप कर निर्विकल्प स्थिति बनाने वाले श्रेष्ठ भाग्यवान भव
यदि कोई भी गलती हो जाती है तो गलती होने के बाद क्यों, क्या, कैसे, ऐसे नहीं वैसे...यह सोचने में समय नहीं गंवाओ। जितना समय सोचने स्वरूप बनते हो उतना दाग के ऊपर दाग लगाते हो, पेपर का टाइम कम होता है लेकिन व्यर्थ सोचने का संस्कार पेपर के टाइम को बढ़ा देता है इसलिए व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को परिवर्तन शक्ति द्वारा सेकण्ड में स्टॉप कर दो तो निर्विकल्प स्थिति बन जायेगी। जब यह संस्कार इमर्ज हो तब कहेंगे भाग्यवान आत्मा।
स्लोगन: खुशी के खजाने से सम्पन्न बनो तो दूसरे सब खजाने स्वत: आ जायेंगे।
प्रश्न: जो बाप की श्रीमत का उल्लंघन करते हैं - उनकी अन्तिम गति क्या होगी?
उत्तर: श्रीमत का उल्लंघन करने वालों को माया के भूत अन्त में राम-राम संग है... करके घर ले जायेंगे। फिर बहुत कड़ी सजा खानी पड़ेगी। श्रीमत पर न चले तो यह मरे। धर्मराज पूरा हिसाब लेता है, इसलिए बाप बच्चों को अच्छी मत देते, बच्चे माया की बुरी मत से सावधान रहो। ऐसा न हो बाप का बनकर फिर कोई विकर्म हो जाए और 100 गुणा दण्ड भोगना पड़े। श्रीमत पर न चलना, पढ़ाई छोड़ना ही अपने ऊपर बददुआ, अकृपा करना है।
गीत:- ओम् नमो शिवाए...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) यज्ञ की प्यार से सेवा कर, कदम-कदम पर श्रीमत पर चलते बाप से मन-इच्छित फल अर्थात् विश्व की बादशाही लेनी है।
2) विनाश तो होना ही है - इसलिए अपना सब कुछ सफल कर लेना है। पैसा है तो सेन्टर खोल अनेको के कल्याण के निमित्त बनना है।
वरदान: व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को सेकण्ड में स्टॉप कर निर्विकल्प स्थिति बनाने वाले श्रेष्ठ भाग्यवान भव
यदि कोई भी गलती हो जाती है तो गलती होने के बाद क्यों, क्या, कैसे, ऐसे नहीं वैसे...यह सोचने में समय नहीं गंवाओ। जितना समय सोचने स्वरूप बनते हो उतना दाग के ऊपर दाग लगाते हो, पेपर का टाइम कम होता है लेकिन व्यर्थ सोचने का संस्कार पेपर के टाइम को बढ़ा देता है इसलिए व्यर्थ संकल्पों के तेज बहाव को परिवर्तन शक्ति द्वारा सेकण्ड में स्टॉप कर दो तो निर्विकल्प स्थिति बन जायेगी। जब यह संस्कार इमर्ज हो तब कहेंगे भाग्यवान आत्मा।
स्लोगन: खुशी के खजाने से सम्पन्न बनो तो दूसरे सब खजाने स्वत: आ जायेंगे।