Wednesday, May 16, 2012

Murli [16-05-2012]-Hindi

मुरली सार : ''मीठे बच्चे - तुम बाप की श्रीमत पर चलो तो तुम्हें कोई भी दु:ख दे नहीं सकता, दु:ख तकलीफ देने वाला रावण है जो तुम्हारे राज्य में होता नहीं'' 
प्रश्न: इस ज्ञान यज्ञ में तुम बच्चे कौन सी आहुति देते हो? 
उत्तर: इस ज्ञान यज्ञ में तुम कोई तिल जौं की आहुति नहीं देते, इसमें तुम्हें देह सहित जो कुछ भी है वह सब आहुति देनी है अर्थात् बुद्धि से सब भुला देना है। इस यज्ञ की सम्भाल पवित्र रहने वाले ब्राह्मण ही कर सकते हैं। जो पवित्र ब्राह्मण बनते वही फिर ब्राह्मण सो देवता बनते हैं। 
गीत:- तुम्हें पाके हमने जहान... 
धारणा के लिए मुख्य सार: 
1) अविनाशी ज्ञान रत्नों की धारणा कर शंख-ध्वनि करनी है। सबको यह ज्ञान रत्न देने हैं। 
2) सत्य और असत्य को समझकर सत्य मत पर चलना है। कोई भी बेकायदे कर्म नहीं करना है। 
वरदान: परमात्म प्यार के आधार पर दु:ख की दुनिया को भूलने वाले सुख-शान्ति सम्पन्न भव 
परमात्म प्यार ऐसा सुखदाई है जो उसमें यदि खो जाओ तो यह दुख की दुनिया भूल जायेगी। इस जीवन में जो चाहिए वो सर्व कामनायें पूर्ण कर देना - यही तो परमात्म प्यार की निशानी है। बाप सुख-शान्ति क्या देता लेकिन उसका भण्डार बना देता है। जैसे बाप सुख का सागर है, नदी, तलाव नहीं ऐसे बच्चों को भी सुख के भण्डार का मालिक बना देता है, इसलिए मांगने की आवश्यकता नहीं, सिर्फ मिले हुए खजाने को विधि पूर्वक समय प्रति समय कार्य में लगाओ। 
स्लोगन: अपनी सर्व जिम्मेवारियों का बोझ बाप हवाले कर डबल लाइट बनो।