14-05-12 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''बापदादा'' मधुबन
मुरली सार : ''मीठे बच्चे - तुम ब्राह्मणों को ईश्वर की गोद मिली है, तुम्हें नशा रहना चाहिए बाप ने इस तन द्वारा हमें अपना बनाया है''
प्रश्न: बाप ने कौन सा दिव्य कर्तव्य किया है? जिस कारण उनकी इतनी महिमा गाई हुई है?
उत्तर: पतितों को पावन बनाना। सभी मनुष्यों को माया रावण की जंजीरों से छुड़ाना - यह दिव्य कर्तव्य एक बाप ही करते हैं। बेहद के बाप से ही बेहद सुख का वर्सा मिलता है, जो फिर आधाकल्प तक चलता है। सतयुग में है गोल्डन जुबली, त्रेता में है सिल्वर जुबली। वह सतोप्रधान, वह सतो। दोनों को ही सुखधाम कहा जाता है। ऐसे सुखधाम की स्थापना बाप ने की है, इसलिए उनकी महिमा गाई जाती है।
गीत:- इन्साफ का मन्दिर है यह....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देवता वर्ण में जाने के लिए भोजन की बहुत परहेज रखनी है। कोई भी अशुद्ध चीज़ नहीं खानी है।
2) इस पुरानी छी-छी दुनिया, जो कि अब खत्म होने वाली है, इससे बेहद का वैराग्य रख स्वर्ग के रचयिता बाप को याद करना है।
वरदान: शुद्ध संकल्पों के घेराव द्वारा सदा छत्रछाया की अनुभूति करने, कराने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव
आपका एक शुद्ध वा श्रेष्ठ शक्तिशाली संकल्प बहुत कमाल कर सकता है। शुद्ध संकल्पों का बंधन वा घेराव कमजोर आत्माओं के लिए छत्रछाया बन, सेफ्टी का साधन वा किला बन जाता है। सिर्फ इसके अभ्यास में पहले युद्ध चलती है, व्यर्थ संकल्प शुद्ध संकल्पों को कट करते हैं लेकिन यदि दृढ़ संकल्प करो तो आपका साथी स्वयं बाप है, विजय का तिलक सदा है ही सिर्फ इसको इमर्ज करो तो व्यर्थ स्वत: मर्ज हो जायेगा।
स्लोगन: फरिश्ते स्वरूप का साक्षात्कार कराने के लिए शरीर से डिटैच रहने का अभ्यास करो।
मुरली सार : ''मीठे बच्चे - तुम ब्राह्मणों को ईश्वर की गोद मिली है, तुम्हें नशा रहना चाहिए बाप ने इस तन द्वारा हमें अपना बनाया है''
प्रश्न: बाप ने कौन सा दिव्य कर्तव्य किया है? जिस कारण उनकी इतनी महिमा गाई हुई है?
उत्तर: पतितों को पावन बनाना। सभी मनुष्यों को माया रावण की जंजीरों से छुड़ाना - यह दिव्य कर्तव्य एक बाप ही करते हैं। बेहद के बाप से ही बेहद सुख का वर्सा मिलता है, जो फिर आधाकल्प तक चलता है। सतयुग में है गोल्डन जुबली, त्रेता में है सिल्वर जुबली। वह सतोप्रधान, वह सतो। दोनों को ही सुखधाम कहा जाता है। ऐसे सुखधाम की स्थापना बाप ने की है, इसलिए उनकी महिमा गाई जाती है।
गीत:- इन्साफ का मन्दिर है यह....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देवता वर्ण में जाने के लिए भोजन की बहुत परहेज रखनी है। कोई भी अशुद्ध चीज़ नहीं खानी है।
2) इस पुरानी छी-छी दुनिया, जो कि अब खत्म होने वाली है, इससे बेहद का वैराग्य रख स्वर्ग के रचयिता बाप को याद करना है।
वरदान: शुद्ध संकल्पों के घेराव द्वारा सदा छत्रछाया की अनुभूति करने, कराने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव
आपका एक शुद्ध वा श्रेष्ठ शक्तिशाली संकल्प बहुत कमाल कर सकता है। शुद्ध संकल्पों का बंधन वा घेराव कमजोर आत्माओं के लिए छत्रछाया बन, सेफ्टी का साधन वा किला बन जाता है। सिर्फ इसके अभ्यास में पहले युद्ध चलती है, व्यर्थ संकल्प शुद्ध संकल्पों को कट करते हैं लेकिन यदि दृढ़ संकल्प करो तो आपका साथी स्वयं बाप है, विजय का तिलक सदा है ही सिर्फ इसको इमर्ज करो तो व्यर्थ स्वत: मर्ज हो जायेगा।
स्लोगन: फरिश्ते स्वरूप का साक्षात्कार कराने के लिए शरीर से डिटैच रहने का अभ्यास करो।