09-05-12 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''बापदादा'' मधुबन
मुरली सार : ''मीठे बच्चे - बाप ही सतगुरू के रूप में तुम बच्चों से गैरन्टी करते हैं, बच्चे मैं तुम्हें अपने साथ वापस ले जाऊंगा, यह गैरन्टी कोई देहधारी कर न सके''
प्रश्न: तुम बच्चे यह कथा जो सुन रहे हो, यह पूरी कब होगी?
उत्तर: जब तुम फरिश्ते बन जायेंगे। कथा सुनाई जाती है पतित को। जब पावन बन गये तो कथा की दरकार नहीं, इसलिए सूक्ष्मवतन में पार्वती को शंकर ने कथा सुनाई - यह कहना ही रांग है।
प्रश्न:- शिवबाबा की महिमा में कौन से शब्द राइट हैं, कौन से रांग?
उत्तर:- शिवबाबा को अभोक्ता, असोचता, करनकरावनहार कहना राइट है। बाकी अकर्ता कहना राइट नहीं क्योंकि वह पतितों को पावन बनाते हैं।
गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन......
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) शान्ति के सागर बाप से शान्ति - सुख का वर्सा ले शान्त चित रहना है। कभी किसी को दु:ख दे अशान्त नहीं करना है। लूनपानी नहीं होना है।
2) बाप समान अन्धों की लाठी बनना है। बाप की मदद लेने के लिए निश्चयबुद्धि बन सेवा करना है।
वरदान: दिव्य बुद्धि द्वारा सदा दिव्यता को ग्रहण करने वाले सफलतामूर्त भव
बापदादा द्वारा जन्म से ही हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान प्राप्त होता है, जो इस दिव्य बुद्धि के वरदान को जितना कार्य में लगाते हैं उतना सफलतामूर्त बनते हैं क्योंकि हर कार्य में दिव्यता ही सफलता का आधार है। दिव्य बुद्धि को प्राप्त करने वाली आत्मायें अदिव्य को भी दिव्य बना देती हैं। वह हर बात में दिव्यता को ही ग्रहण करती हैं। अदिव्य कार्य का प्रभाव दिव्य बुद्धि वालों पर पड़ नहीं सकता।
स्लोगन: स्वयं को मेहमान समझकर रहो तो स्थिति अव्यक्त वा महान बन जायेगी।
मुरली सार : ''मीठे बच्चे - बाप ही सतगुरू के रूप में तुम बच्चों से गैरन्टी करते हैं, बच्चे मैं तुम्हें अपने साथ वापस ले जाऊंगा, यह गैरन्टी कोई देहधारी कर न सके''
प्रश्न: तुम बच्चे यह कथा जो सुन रहे हो, यह पूरी कब होगी?
उत्तर: जब तुम फरिश्ते बन जायेंगे। कथा सुनाई जाती है पतित को। जब पावन बन गये तो कथा की दरकार नहीं, इसलिए सूक्ष्मवतन में पार्वती को शंकर ने कथा सुनाई - यह कहना ही रांग है।
प्रश्न:- शिवबाबा की महिमा में कौन से शब्द राइट हैं, कौन से रांग?
उत्तर:- शिवबाबा को अभोक्ता, असोचता, करनकरावनहार कहना राइट है। बाकी अकर्ता कहना राइट नहीं क्योंकि वह पतितों को पावन बनाते हैं।
गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन......
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) शान्ति के सागर बाप से शान्ति - सुख का वर्सा ले शान्त चित रहना है। कभी किसी को दु:ख दे अशान्त नहीं करना है। लूनपानी नहीं होना है।
2) बाप समान अन्धों की लाठी बनना है। बाप की मदद लेने के लिए निश्चयबुद्धि बन सेवा करना है।
वरदान: दिव्य बुद्धि द्वारा सदा दिव्यता को ग्रहण करने वाले सफलतामूर्त भव
बापदादा द्वारा जन्म से ही हर बच्चे को दिव्य बुद्धि का वरदान प्राप्त होता है, जो इस दिव्य बुद्धि के वरदान को जितना कार्य में लगाते हैं उतना सफलतामूर्त बनते हैं क्योंकि हर कार्य में दिव्यता ही सफलता का आधार है। दिव्य बुद्धि को प्राप्त करने वाली आत्मायें अदिव्य को भी दिव्य बना देती हैं। वह हर बात में दिव्यता को ही ग्रहण करती हैं। अदिव्य कार्य का प्रभाव दिव्य बुद्धि वालों पर पड़ नहीं सकता।
स्लोगन: स्वयं को मेहमान समझकर रहो तो स्थिति अव्यक्त वा महान बन जायेगी।