Monday, April 2, 2012

Murli [2-04-2012]-Hindi

मुरली सार:- ''मीठे बच्चे - जो खुशी खुद को मिली है, वह सबको देनी है, तुम्हें सुख-शान्ति बांटने का धन्धा करना है''
प्रश्न :- तुम बच्चों को इस बेहद ड्रामा की हर सीन बहुत ही पसन्द है - क्यों?
उत्तर: क्योंकि स्वयं क्रियेटर को यह ड्रामा पसन्द है। जब क्रियेटर को पसन्द है तो बच्चों को भी अवश्य पसन्द होगा। तुम किसी बात में भी नाराज़ नहीं हो सकते। तुम जानते हो यह दु:ख-सुख का नाटक बहुत सुन्दर बना हुआ है। इसमें हार-जीत का खेल चलता रहता है, इसे खराब कह नहीं सकते। दिन भी अच्छा तो रात भी अच्छी... इस ड्रामा में जो भी पार्ट मिला हुआ है, उसे खुशी से बजाने वाले बहुत मजे में रहते हैं। इस बेहद नाटक की नॉलेज का सिमरण करने वाले सदा हर्षित रहते हैं। बुद्धि भरपूर रहती है।
गीत:- हमारे तीर्थ न्यारे हैं...
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप समान महादानी बनना है। सबको सुख-शान्ति का वर्सा देना है। ज्ञान को धारण कर फिर उगारना है।
2) बेहद नाटक को देख सदा हर्षित रहना है। प्रभू की लीला और यह ड्रामा कितना विचित्र है - इसका सिमरण कर मजे में रहना है।
वरदान: स्वमान में स्थित रह हद की इच्छाओं को समाप्त करने वाले इच्छा मात्रम् अविद्या भव
जो स्वमान में स्थित रहते हैं उन्हें कभी भी हद का मान प्राप्त करने की इच्छा नहीं होती। एक स्वमान में सर्व हद की इच्छायें समा जाती हैं, मांगने की आवश्यकता नहीं रहती। हद की इच्छायें कभी भी पूर्ण नहीं होती हैं, एक हद की इच्छा अनेक इच्छाओं को उत्पन्न करती है और स्वमान सर्व इच्छाओं को सहज ही सम्पन्न कर देता है इसलिए स्वमानधारी बनो तो सर्व प्राप्ति स्वरूप बन जायेंगे, अप्राप्ति वा इच्छाओं की अविद्या हो जायेगी।
स्लोगन: हर परिस्थिति में स्वयं को मोल्ड कर लेने वाला ही रीयल गोल्ड है।